जब मैं बहुत छोटा था, और अपनी चंचलता और शैतानियों से कईयों को गुस्सा दिलाता था, घर के सामान को नुक्सान पहुंचाता था, बड़े बूढों को सताता था, खुद को भी चोटें लगाता था, और डांट पड़ने पर जब गला फाड़ के रोता गाता था , तो उन सुबकियों में, उस रोने में बस एक ही शब्द मुह से बहार आता था और आता रहता था। मम्मी, मम्मी। रुंधे गले से, मम्मी को आवाजें , मम्मी, मम्मी की पुनरावृत्ति, मम्मी को धुन्ड्ती नजरें, और मम्मी से जाकर चिपक जाने की छटपटआहट . मानो दुनिया "मम्मी"
पर ही ख़तम हो जाती थी.
वो नासमझ , नादान, छोटा बच्चा भी समझता था कि मम्मी का जोर से सीने में भींचना और उसकी एक पुचकार। वही है उसकी हर समस्या, हर दर्द, हर डर, हर आंसू का इलाज़। उसकी हर गलती , हर शैतानी को माफ़ करने की विशालता सिर्फ एक ही ह्रदय में है और वो है उसकी मम्मी का ह्रदय. उस नासमझी की उम्र में भी मेरी वो समझ आज भी उतनी ही सत्य है जितनी तब थी. मेरी हर गलती , हर शैतानी को माफ़ करने की विशालता रखने वाला आज भी कोई और नहीं बल्कि मेरी मम्मी ही है. मेरी सबसे अच्छी दोस्त, मेरी मम्मी .
अपने इन्जीनीरिंग के दिनों में कई बार दोस्तों के साथ भी ये चर्चा हुई की इतना अथाह प्यार कोई कैसे कर सकता है किसी से जितना मम्मी करती है अपने बच्चों से. हे भगवान् , इतना प्यार, हर गलती की माफ़ी, अपना सुख दुःख तत्काल प्रभाव से निरस्त, अपने बच्चे के सुख दुःख के लिये. कैसे संभव है ये. चर्चा में फिर कई द्रशांत आते थे.
एक चिड़िया का अपने अंडे देने से लेकर बच्चे को उड़ाने तक की अविरत मेहनत, बच्चे के मुख पर दानो को रखना, उन्हें उड़ाने के लिए साथ में उड़ना और गिरने पर चोंच से पकड़ कर वापिस घोंसले में ले जाकर रखना। एक गाय का अपने बछड़े को हर समय अपने सामने रखने की चेष्ठा , उसे चाट चाट कर दुलारना और उसके थोड़ी देर भी आखों से दूर होने पर अश्रु धारा का बह निकलना। और भी न जाने कितने उदाहारण . फिर निष्कर्ष यही निकलता था की मां के प्यार का कोई सानी नहीं। हमें दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार हमारी मम्मी ही करती है. हम सभी एकमत होकर कहते थे कि हमारी समझ में तो प्यार मतलब मम्मी।
आज भी इतने वषों के बाद, घर से लौटते समय, लड्डू , नमकीन और भी ढेरों व्यंजन बना के रख देने का अथक प्रयास, रास्ते के लिए खाना, और कई सारी नसीहतें। मैं बदल गया, सब बदल गया पर मम्मी का प्यार वही। अनंत।
ऐसा कहते है की प्यार को वास्तविकता में परिभाषित नहीं किया जा सकता, उस अहसास को वर्णित करना कतई संभव नहीं है. पर फिर भी बुद्धिजीवियों ने शायद प्यार को एक शब्द देने की कोशिश की और उसकी अतिरेकता को "ममता " कह दिया गया.
मम्मी, आपके जैसा कोई नहीं।

https://soundcloud.com/met-rahulraj/vmyi1ewwetn8#play
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अतुलनीय
ReplyDeleteVery True
ReplyDeleteAccha hai. Keep writing :)
ReplyDeletesuper like:)
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